Brief Summary
आज के खंड में, वक्ता परमेश्वर के वचन के प्रति हमारे प्रतिउत्तर पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो हमारे हृदय की वास्तविक स्थिति को दर्शाता है। प्रतिउत्तर दो प्रकार के होते हैं: आज्ञाकारिता और अनाज्ञाकारिता। दृष्टांतों की श्रृंखला में, बीज बोने वाले दृष्टांत (पैरेबल) पर बात की जाती है, जो बीज बोने वाले से बढ़कर भूमियों का दृष्टांत है। इस दृष्टांत को समझना आसान है क्योंकि यीशु मसीह ने स्वयं इसका अर्थ समझाया है।
- परमेश्वर के वचन के प्रति हमारा प्रतिउत्तर हमारे हृदय की वास्तविक स्थिति को दर्शाता है।
- प्रतिउत्तर दो प्रकार के होते हैं: आज्ञाकारिता और अनाज्ञाकारिता।
- बीज बोने वाला दृष्टांत भूमियों के बारे में भी है।
- दृष्टांतों का उद्देश्य लोगों में भेद करना है।
- शैतान वचन के प्रचार में विघ्न डालना चाहता है।
परमेश्वर के वचन के प्रति हमारा प्रतिउत्तर
वक्ता बताते हैं कि परमेश्वर के वचन के प्रति हमारा प्रतिउत्तर हमारे हृदय की वास्तविक स्थिति को दर्शाता है। यह प्रतिउत्तर दो प्रकार का होता है: आज्ञाकारिता या अनाज्ञाकारिता। वक्ता कहते हैं कि जब हम परमेश्वर के वचन को सुनते हैं, तो हमारा हृदय या तो आज्ञाकारिता में प्रतिक्रिया करता है या अनाज्ञाकारिता में। यह प्रतिक्रिया हमारे हृदय की वास्तविक स्थिति को उजागर करती है।
बीज बोने वाले का दृष्टांत
वक्ता दृष्टांतों की श्रृंखला में आगे बढ़ते हुए बीज बोने वाले दृष्टांत पर बात करते हैं। वे बताते हैं कि यह दृष्टांत केवल बीज बोने वाले के बारे में नहीं है, बल्कि उससे बढ़कर भूमियों के बारे में है। यीशु मसीह चार से आठ पद के पहले भाग में दृष्टांत बताते हैं, आठ के दूसरे भाग से दस पद में दृष्टांत का उद्देश्य बताते हैं, और 11 से 15 पद में दृष्टांत का अर्थ बताते हैं। वक्ता कहते हैं कि यह दृष्टांत समझना आसान है क्योंकि यीशु मसीह ने खुद 11 से 15 पद में इसका अर्थ समझाया है।
दृष्टांत का उद्देश्य
वक्ता बताते हैं कि यीशु मसीह दृष्टांतों में क्यों बात करते हैं। वे कहते हैं कि जब यीशु मसीह दृष्टांतों में बोलते हैं, तो वे लोगों के लिए अर्थ को आसान नहीं बना रहे हैं, बल्कि लोगों में भेद कर रहे हैं। दृष्टांतों के द्वारा यीशु मसीह यह दिखाते हैं कि कौन उनके लोग हैं और कौन नहीं हैं। जो लोग सुनते हुए भी नहीं सुनते और देखते हुए भी नहीं देखते, वे उनके लोग नहीं हैं।
बीज का अर्थ
वक्ता बताते हैं कि बीज परमेश्वर का वचन है। वे कहते हैं कि हमें यह अनुमान लगाने की जरूरत नहीं है कि बीज का क्या अर्थ है, क्योंकि यीशु मसीह ने स्वयं इसका अर्थ बताया है। बीज बोने वाला उदारता के साथ परमेश्वर के वचन का प्रचार करता है। परमेश्वर का वचन स्पष्टता और अधिकार के साथ प्रचार किया जाता है।
चार प्रकार की भूमि
वक्ता चार प्रकार की भूमि के बारे में बताते हैं जिन पर बीज गिरता है। पहली भूमि मार्ग के किनारे है, जहाँ बीज गिरता है और शैतान आकर उसे उठा ले जाता है ताकि लोग विश्वास न करें और उनका उद्धार न हो। दूसरी भूमि चट्टान पर है, जहाँ बीज उगता तो है, लेकिन जड़ नहीं पकड़ पाता और परीक्षा आने पर लोग बहक जाते हैं। तीसरी भूमि कटीली झाड़ियों के बीच में है, जहाँ बीज उगता है, लेकिन चिंताएँ, धन और जीवन के सुख-विलास उसे बढ़ने नहीं देते। चौथी भूमि अच्छी भूमि है, जहाँ बीज उगता है और फल लाता है।
चिंताएँ, धन और जीवन के सुख विलास
वक्ता बताते हैं कि चिंताएँ, धन और जीवन के सुख-विलास कैसे लोगों को परमेश्वर से दूर ले जाते हैं। वे कहते हैं कि लोग अक्सर इस बात की चिंता करते हैं कि वे क्या खाएंगे, उनके बच्चे क्या करेंगे, और बुढ़ापे में उनका सहारा कौन होगा। वे धन के चक्कर में पड़ जाते हैं और जीवन के सुख-विलास में फंस जाते हैं। इससे उनका आत्मिक विकास रुक जाता है और वे परिपक्व नहीं हो पाते।
आत्मिक परिपक्वता
वक्ता आत्मिक परिपक्वता के बारे में बताते हैं। वे कहते हैं कि आत्मिक परिपक्वता समय के साथ आती है। यह परीक्षाओं, समस्याओं और दिक्कतों में ईश्वर भक्ति का होना है। यह अपने पापों पर विजय पाना और संसार को नकारना है। आत्मिक परिपक्वता में प्रेम, धैर्य और सहनशीलता शामिल हैं।
दो प्रकार की भूमि
वक्ता बताते हैं कि वास्तव में दो प्रकार की भूमि होती है: खराब भूमि और अच्छी भूमि। पहली तीन प्रकार की भूमि खराब है क्योंकि वे फल नहीं लाती हैं। चौथी प्रकार की भूमि अच्छी है क्योंकि वह फल लाती है। वक्ता पूछते हैं कि हम किस प्रकार की भूमि हैं।
परमेश्वर का वचन
वक्ता कहते हैं कि आज्ञाकारिता के लिए परमेश्वर का वचन आवश्यक है, वैकल्पिक नहीं। वे पूछते हैं कि परमेश्वर के वचन के प्रति हमारी प्रतिक्रिया क्या है। क्या हम केवल सुनते हैं या हम करते भी हैं? वक्ता लूका 6:46 का हवाला देते हैं, जहाँ यीशु मसीह कहते हैं, "जो मैं कहता हूँ, जब तुम उसे नहीं मानते, तो मुझे हे प्रभु, हे प्रभु क्यों कहते हो?"
नया हृदय
वक्ता कहते हैं कि हम चाहे जितना प्रयास कर लें, हम अच्छी भूमि नहीं बन सकते जब तक प्रभु जी हमें नया हृदय न दें। वे यहेजकेल 36:26-27 का हवाला देते हैं, जहाँ परमेश्वर कहते हैं, "मैं तुम्हें एक नया हृदय दूंगा और तुम्हारे भीतर एक नई आत्मा उत्पन्न करूंगा; और तुम्हारे देह में से पत्थर का हृदय निकाल कर तुम्हें मांस का हृदय दूंगा। मैं अपना आत्मा तुम में डालूंगा और तुम्हें अपनी विधियों पर चलाऊंगा, और तुम मेरे नियमों का सावधानी से पालन करोगे।" वक्ता कहते हैं कि हमें प्रभु जी से दया मांगनी चाहिए और उनसे अपने आत्मा से भरने की प्रार्थना करनी चाहिए।