Brief Summary
ये वीडियो लिवर के हेल्थ के बारे में है और कैसे आजकल ज़्यादातर इंडियंस फैटी लिवर डिजीज से जूझ रहे हैं, भले ही वो शराब ना पीते हों। वीडियो में लिवर को डिटॉक्सिफाई करने के तरीके और लाइफस्टाइल में बदलाव लाने के बारे में बताया गया है जिससे लिवर को हेल्दी रखा जा सके।
- इंडिया में हर तीसरा इंसान फैटी लिवर से परेशान है, बच्चों में भी ये प्रॉब्लम बढ़ रही है।
- लिवर हमारे बॉडी में 500 से ज़्यादा ज़रूरी काम करता है, इसलिए इसका ख्याल रखना बहुत ज़रूरी है।
- पोल्यूशन और मिलावटी खाना लिवर को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं।
- ऑटोफेजी एक प्रोसेस है जिससे बॉडी खुद को डिटॉक्सिफाई करती है, और इसे फास्टिंग और एक्सरसाइज से एक्टिवेट किया जा सकता है।
लिवर की हालत: एक चौंकाने वाली सच्चाई
आजकल लोगों में ये गलतफ़हमी है कि अगर वो शराब नहीं पीते तो उनका लिवर सेफ है। लेकिन, इंडिया में लिवर की बीमारियाँ बहुत तेजी से बढ़ रही हैं। हर तीन में से एक इंडियन फैटी लिवर डिजीज से परेशान है, और बच्चों में भी ये प्रॉब्लम आम हो गई है। AIIMS की एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 40% इंडियंस का लिवर खराब है, जिसमें वो लोग भी शामिल हैं जिन्होंने कभी शराब नहीं पी। 1990 से 2017 तक के हेल्थ रिकॉर्ड्स बताते हैं कि लिवर की बीमारियों में सिर्फ 2% केसेस ही अल्कोहल की वजह से थे। लिवर हमारे बॉडी का एक बहुत ज़रूरी ऑर्गन है जो 500 से ज़्यादा फंक्शन्स को हैंडल करता है, और ये दिमाग के बाद सबसे ज़्यादा कैलोरीज़ इस्तेमाल करता है।
लिवर का डेली रूटीन: कैसे होता है काम
लिवर हर मिनट 1 लीटर से ज़्यादा ब्लड को फिल्टर करता है। इसे दो जगहों से ब्लड सप्लाई मिलती है: 75% ब्लड पेट और आंतों से आता है, जो खाने से अब्सॉर्ब हुए न्यूट्रिशन को लिवर तक पहुंचाता है, और 25% ब्लड सीधे हार्ट से आता है। आप जो भी खाते-पीते और सांस लेते हैं, वो सब आपके लिवर से होकर गुजरता है। लिवर ब्लड से टॉक्सिन्स और वेस्ट को फिल्टर करता है, और न्यूट्रिएंट्स को एनर्जी में कन्वर्ट करता है। इसके बाद, ब्लड हार्ट में वापस चला जाता है ताकि वो बॉडी के बाकी हिस्सों तक पहुंच सके।
लिवर को नुकसान पहुंचाने वाले दो बड़े कारण
लिवर को नुकसान पहुंचाने के दो मेन कारण हैं: पोल्यूशन और खराब लाइफस्टाइल। इंडिया में हवा में पोल्यूशन बहुत ज़्यादा है, और कई शहरों में तो WHO की सेफ्टी लिमिट से भी सात गुना ज़्यादा हार्मफुल पार्टिकल्स पाए जाते हैं। पोल्यूटेड हवा में मौजूद केमिकल्स और टॉक्सिन्स लिवर को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके अलावा, खानों में भी पेस्टिसाइड्स और मिलावट की वजह से लिवर पर बुरा असर पड़ता है। 40 से 50% फ्रूट्स और वेजिटेबल्स में FSSAI लिमिट से ज़्यादा पेस्टिसाइड्स पाए जाते हैं। पानी में भी फर्टिलाइजर्स और पेस्टिसाइड्स के केमिकल्स मिल रहे हैं, जिससे लिवर पर एक्स्ट्रा लोड आ रहा है।
लाइफस्टाइल डिजीज: फैटी लिवर
आजकल फैटी लिवर एक बड़ी लाइफस्टाइल बीमारी बन चुकी है। हैदराबाद जैसे शहरों में 80% IT प्रोफेशनल्स को ये बीमारी हो रही है। स्टेज वन फैटी लिवर में लिवर पर फैट की लेयर जमने लगती है। हमारे बॉडी में एनर्जी स्टोर करने के लिए तीन फ्यूल टैंक्स होते हैं: लिवर, मसल्स और फैट सेल्स। जब हम खाना खाते हैं, तो शुगर्स और फैट्स ब्लड में मिक्स होकर सबसे पहले लिवर में जाते हैं। इंसुलिन हॉर्मोन शुगर और फैट्स को सही जगह पर डायरेक्ट करता है। लेकिन, अगर इंसुलिन सही से काम नहीं कर रहा है, तो फैट लिवर और पेट के आस-पास जमा हो जाता है, जिससे फैटी लिवर डिजीज हो जाती है।
इंसुलिन रेजिस्टेंस और लिवर पर असर
आजकल की लाइफस्टाइल में लोग ज़्यादा देर तक बैठे रहते हैं और हाई कार्बोहाइड्रेट और सैचुरेटेड फैट्स वाले फूड्स खाते रहते हैं, जिससे इंसुलिन रेजिस्टेंस हो जाता है। इंसुलिन रेजिस्टेंस की वजह से मसल्स और फैट सेल्स एनर्जी लेना बंद कर देते हैं, और एक्स्ट्रा शुगर और फैट लिवर में जमा होने लगता है। इससे लिवर पर स्ट्रेस बढ़ जाता है, और लिवर सेल्स डैमेज होने लगते हैं। जब लिवर में स्ट्रेस होता है, तो वो अपना काम ठीक से नहीं कर पाता, जिससे बॉडी में कई तरह की प्रॉब्लम्स होने लगती हैं।
खराब लिवर के नुकसान: स्किन, हार्ट और थायरॉइड
स्ट्रेस्ड लिवर की वजह से स्किन डल हो जाती है, डार्क सर्कल्स आ जाते हैं, और बाल जल्दी सफ़ेद होने लगते हैं। लिवर डिटॉक्सिफिकेशन का काम करता है, लेकिन स्ट्रेस में होने पर वो टॉक्सिन्स को ठीक से ब्रेकडाउन नहीं कर पाता, जिससे बॉडी में और ज़्यादा टॉक्सिक चीजें बनने लगती हैं। लिवर ग्लटाथायोन नाम का एंटीऑक्सीडेंट भी प्रोड्यूस करता है, जो पोल्यूशन को ब्रेकडाउन करता है, लेकिन अगर लिवर खराब है तो ये एंटीऑक्सीडेंट कम बनता है। इसके अलावा, खराब लिवर कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाकर हार्ट की बीमारियों का रिस्क बढ़ा देता है, और बाइल के प्रोडक्शन को भी अफेक्ट करता है, जिससे फैट्स डाइजेस्ट नहीं होते और ब्लड में इंप्योरिटीज घूमने लगती हैं। वीक लिवर हाइपरटेंशन और एंडोथलियल डैमेज से भी जुड़ा हुआ है, और थायरॉइड हॉर्मोन के एक्टिवेशन को भी अफेक्ट कर सकता है।
लिवर हेल्थ को कैसे चेक करें: टेस्ट्स
लिवर की हेल्थ को चेक करने के लिए सबसे बेसिक टेस्ट है लिवर का ब्लड टेस्ट, जो लगभग 70% एक्यूरेसी से बता सकता है कि लिवर नॉर्मल है कि नहीं। इस टेस्ट में ALT, AST जैसे मार्कर्स देखे जाते हैं। फैटी लिवर और उसके स्टेजेस के बारे में ज़्यादा एक्यूरेटली जानने के लिए अल्ट्रासाउंड टेस्ट करवाने होते हैं, जिसमें फाइब्रोस्कैन सबसे ज़्यादा एक्यूरेट है। ये टेस्ट फैटी लिवर का स्टेज बता सकता है और ये भी बता सकता है कि लिवर में स्कार टिश्यूज़ तो नहीं बन रहे हैं।
लिवर को डिटॉक्सिफाई करने के तरीके: ऑटोफेजी
लिवर प्रोटेक्शन को प्रायोरिटी बनाना बहुत ज़रूरी है, और ये इतना मुश्किल भी नहीं है। लिवर में खुद को रीजेनरेट करने की पावर होती है। ऑटोफेजी एक ऐसा प्रोसेस है जिससे बॉडी खुद को डिटॉक्सिफाई करती है। इसमें सेल्स अपने अंदर के टॉक्सिन्स, वेस्ट्स और फैट्स को जला देते हैं या रिसाइकल कर देते हैं। ऑटोफेजी को एक्टिवेट करने के लिए बॉडी को कंट्रोल्ड स्ट्रेस देना होता है, जिसके लिए फास्टिंग और एक्सरसाइज सबसे पावरफुल तरीके हैं।
लिवर को हेल्दी रखने के लिए डाइट और एक्सरसाइज
लिवर को हेल्दी रखने के लिए 15 से 18 घंटे की फास्टिंग करना बहुत फायदेमंद है। फास्टिंग में लिवर फैट सोर्सेस को एनर्जी के तौर पर यूज करना स्टार्ट कर देता है, जिससे डिटॉक्सिफिकेशन का प्रोसेस शुरू हो जाता है। रेगुलर एक्सरसाइज भी ऑटोफेजी को एक्टिवेट करती है। कार्डियो और मसल बिल्डिंग एक्सरसाइजेस दोनों ही लिवर के लिए अच्छे हैं। डाइट में कार्बोहाइड्रेट्स को लिमिट करना और शुगर्स को कम करना ज़रूरी है। कीटोजेनिक डाइट भी कुछ समय के लिए फॉलो की जा सकती है, लेकिन मेडिटरेनियन डाइट सबसे आइडियल है। डिनर को जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी करना चाहिए, ताकि सुबह तक 15 घंटे की फास्टिंग हो जाए।
लिवर के लिए स्पेशल न्यूट्रिएंट्स और सप्लीमेंट्स
कुछ स्पेशल न्यूट्रिएंट्स लिवर को प्रोटेक्ट और डिटॉक्सिफाई करने में बहुत पावरफुल हैं। NAC (N-एसिटाइल सिस्टीन) और टुटका प्लस मिल्क थिसल के सप्लीमेंट्स लिवर को 60 से 80% प्रोटेक्शन दे सकते हैं। NAC ग्लूटाथायोन का प्रीकर्सर है और एक सुपर एंटीऑक्सीडेंट है, जो लिवर और किडनीज को प्रोटेक्ट करता है। टुटका एक बाइल एसिड है जो लिवर का लोड कम करता है। करक्यूमिन और ग्रीन टी में मौजूद EGCG भी पावरफुल प्रोटेक्टेंट हैं। बरबरीन भी इंसुलिन सेंसिटिविटी को बढ़ाता है और ऑटोफेजी को ट्रिगर करता है। अगर बजट कम है तो HAL का Liv 52 भी एक अच्छा ऑप्शन है।
पोल्यूशन से बचाव और फाइनल टिप्स
अगर आप पोल्यूटेड सिटी में रहते हैं तो एयर प्यूरीफायर में इन्वेस्ट करना चाहिए। डाइट और लाइफस्टाइल के बारे में डिटेल में जानने के लिए आप वीडियो में दिए गए लिंक्स पर क्लिक करके और जानकारी ले सकते हैं। प्रोसेस्ड फूड्स से बचना चाहिए क्योंकि उनमें खतरनाक इंग्रेडिएंट्स होते हैं जो लिवर को डैमेज करते हैं।